आपने ‘अंदाज’ फिल्म का यह गीत कभी-न-
कभी जरूर सुना होगा कि ‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना,
यहाँ कल क्या होगा किसने जाना।’ यह बहुत
ही प्यारा और बहुत ही फिलासॉफीकल गीत है। इसमें
हमारे जीवन के बहुत महत्त्वपूर्ण
संदेशों को पिरोया गया है। इसकी पहली ही लाईन में
दो बहुत बड़ी बातें कही गई हैं। पहली बात तो यह
कि जिन्दगी का जो सफर है, वह सुहाना होता है,
डरावना नहीं। जिन्दगी जो भी है और जैसी भी है,
ऐसी है जिसे प्यार किया जाना चाहिए और भरपूर प्यार
किया जाना चाहिए। जो कुछ भी हमारे सामने आता है,
उसे खुले मन से स्वीकार किया जाना चाहिए।
दूसरी जोरदार बात यह कही गई है कि लाईफ
अनप्रेडिक्टेबल है।
इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। यह
नहीं बताया जा सकता कि कल क्या होगा।
यानी कि यदि हम इन दोनों ही बातों को जोड़ दें, तो यह
एक ऐसी सुहावनी यात्रा बन जाएगी, जिसके बारे में हमें
पता ही नहीं। अगला कौन-सा स्टेशन आने वाला है,
स्टेशन आने वाला है भी या नहीं और हम यह
भी नहीं जानते कि यह गाड़ी जाकर रुकेगी कहाँ।
आप सोचकर देखें कि यदि हम सचमुच ऐसी गाड़ी में बैठ
जाएं, जिसके जाने के बारे में ही कुछ पता न हो, तो हमारे
लिए कितनी मुश्किल हो जाएगी। लेकिन जीवन
की गाड़ी एक ऐसी ही गाड़ी है, जिसके पहुँचने का ठौर-
ठिकाना नहीं होने के बाद भी हमें यह यात्रा सुख देती है
और यह सुख सही अर्थों में न जानने का सुख है।
कहीं भी न पहुँचने का सुख है।
आप स्वयं अपने जीवन की यात्रा के बारे में
सोचकर देखिए कि आपने उसकी शुरुआत कैसे की थी और
आज आप कहाँ हैं? आज आप जहाँ हैं, क्या शुरूआत
करने वाले दिन आप जानते थे कि यहाँ पहुँच जाएँगे।
यदि आपका उत्तर यह है कि ‘‘मैं नहीं जानता था’’,
तो यही न जानना ही तो यही अननोननेस
ही तो जिन्दगी की सबसे बड़ी खूबसूरती है।
Address :- Road No.43,Shed No.4316/1, Sachin G.I.D.C.,Sachin,SURAT
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Saturday 26 July 2014
मेरे बड़े पापाजी श्री जूजाजी आल
Sunday 20 July 2014
मेरी जिन्दगी
दोस्तो, आज युग्म मे रचना प्रकाशित
कर रहा हूँ , दोनों रचना एक ही सिक्के के
दोनों पहलू है। आप अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से
मुझे अवगत करा कर कृतार्थ करे , आप की इन
प्रतिक्रियाओ से मुझे एक अलग प्रकार के आनंद
की प्राप्ति होती है, यूं ही आपका स्नेह
मिलता रहे, आप लोगो के इस हौसला अफजाई से
एक नई रचना आप के सामने प्रस्तुत है
1) अच्छा लगता है.....
वर्षा के मौसम में,
और घर के बालकनी में,
भीगना, अच्छा लगता है
शाम के समय में
और ‘निल्को’ के साथ में
कलम चलाना अच्छा लगता है
रविवार के दिन मैं
और बाज़ार के भीड़ में
पहचान बनाना अच्छा लगता है
चांदनी रात में
और उनके साथ में
बातें करना अच्छा लगता है
सावन के महीने में,
और गर्मी के पसीने में
कूलर के आगे बैठना ही अच्छा लगता है
(२) अच्छा नहीं लगता.....
बाज़ार की भीड़ में
मैं भी खो जाऊ
मुझे अच्छा नहीं लगता
अपने ही शहर में
घूम कर घर नहीं जाऊ
मुझे अच्छा नहीं लगता
काम-काज के क्षेत्र में
उनकी तरह चुगली करना
मुझे अच्छा नहीं लगता
रचना प्रकाशित होने के बाद
पाठको की प्रतिक्रिया न मिलना
मुझे अच्छा नहीं लगता
इस भीड़ तंत्र में
गुमनाम सा ‘निल्को’ को जीना
मुझे अच्छा नहीं लगता
वसनाराम देवासी करवाडा
Friday 18 July 2014
मेरे शादी की एक यदस्त
भाई की शादी में सज धज के
हम हे हमसफर
देवासी समाज सुरत
मेरी शादी 18/06/14
Thursday 17 July 2014
मेरे शादी नुतर 22/06/14
रतन देवासी (पूर्व उप संसक्त राजस्थान एव mla रानीवाडा)
जोयतारामजी परोहित (प्रधान ब्लॉग अद्य्क्स जसवन्तपुरा)